Thursday, September 24, 2009

साहित्य दर्शन डॉट कॉम का माह सितम्बर का अंक

अपनी बात
सितम्बर 09

समकालीन हिन्दी कविता के परिदृश्य पर नज़र डाले तो हम पाते हैं अपनी सर्जनात्मक उर्जा और सक्रियता के साथ ऋतुराज लगातार लोहा ले रहे हैं और बार बार दर्ज करवा रहे हैं अपनी उपस्थिति लगभग पांच दशकों का उनका साहित्यक कर्म प्रेरणा देता है विपरित परिस्थितियों से लगातार झूझने की और उनका सानिध्य वर्तमान को कीलित करता हुआ रोप देता है मानस पटल पर उर्जस्व भविष्य के असंख्य बीज पांच दशकों का लम्बा कालखण्ड उनकी रचनात्मक उर्जा का सजा संवरा उद्यान है जिसमें विविध रंगों के फूल पौधे अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं और उनकी कविताएं `सत´ को खोजने तथा पाने की कुंजी के रूप में हमारे सम्मुख खड़ी हैं अडिग जिनके रास्तें हम उनके मन की तहों को टटोल सकते हैं जितनी उम्दा उनकी कविताएं है उतना ही मारक गद्य, हालांकि उनकी गद्य रचनाएं यदा कदा ही देखने को मिली है हमारे लम्बे अनुरोध, और धैर्य को परखते हुए उन्होंने अपनी डायरी के कुछ पन्ने कुछ बंदिशें: कुछ तराने शीर्षक से इस पत्रिका को उपलब्ध करवाएं जिनको इस अंक मेंं दिया जा रहा है साथ ही इसी शीर्षक से `समय माजरा´ के 68 वें अंक में छपे उनकी डायरी के अंश भी इस अंक में साभार लेकर दिये जा रहे हैं ऋतुराज का अंतस गली कुचे से गुजरते हुए कविता की कच्ची सामग्री ग्रहण करता है ठीक इसी तरह उनका गद्य समय में तरकश में छुपे तीरों को निकालकर निशाने साधता चलता है जो अचूक और अकाट्य हैं वें छोटे छोटे चित्रों के अकूत चितेरे हैं और उनकी लेखनी से निकल कर शब्द नये रूप ग्रहण करते हैं इसी अंक केदारनाथ अग्रवाल के सागर प्रवास के दौरा दिय गये वक्तव्य :मैने कविता रची और कविता ने मुझे भी दिया जा रहा है और साथ ही उनकी सत्रह कविताएं भी हमें लगता है केदार जी की कविताओं से जिस तरह की उर्जा छलकती है वह किसी तरह के उलझाव, बनावट या अभिव्यक्ति में किसी तरह की हिचक और कमजोरी की नहीं वरन् सरल, सहज मानव की निर्मिति करने की ओर अग्रसर होती है और गहन अंधकार में दीये की लौ सी टिमटिमाती नजर आती है इसी के सहारे आगे का रास्ता तय किया जा सकता है भारतीय दार्शनिक परम्परा में जीवन के विवध रूपाकारों का गहन चिन्तन है जो सवालों और जवाबों की कड़ी को आगे बड़ाते हुए मानवीय मन की विविध कड़ियों की गांठें खोलते हुए भावना को भाषा से जोड़ता है, परिणामत: भाषा स्वत: विकसित होती जाती है और उसके आलाढ़न से जन्म लेता है एक नया केनवास जिस पर जीवन के चटक रंग चमचमाने लगते हैं

रमेश खत्री


डायरी - कुछ बंदिशे कुछ तराने : ऋतुराज

कहानी - तीसरा सपना : कमल

कविता - केदार नाथ अग्रवाल, रमेश खत्री और चन्द्रकांत देवताले

व्यंग्य - वसंती गोष्ठी और कविता का कुष्ठ : कैलाश मंडलेकर


पुस्तक समीक्षा - सहज कथ्य शिल्प की कहानियाँ : अजय अनुरागी

संस्मरण - मैंने कविता रची और कविता ने मुझे : केदारनाथ अग्रवाल

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