Monday, December 14, 2009

साहित्य दर्शन. कॉम का नवेम्बर ०९ अंक


भविष्य की ओर उन्मूख
अपनी बात हम इस दुनिया में अपनी इच्छा से नहीं आते और न ही हम यहां आने के लिए किसी प्रकार का चुनाव कर पाते हैं । जब हम सोच के दायरों में आते हैं तो हमारे सम्मुख दार्शनिकों की विचार परम्परा की लम्बी कतार दिखाई देती है, जो सोच के विभिन्न पहलुओं को आदि अनादिकाल से पोषीत और पल्लवित करते रहे हैं और विभिन्न चौखानों में जीवन को बांटते रहे । हम भी यहां आने के बाद जाने अनजाने इन्हीं चौखानों में अपने आपको पड़ा पाते हैं और फिर हमारा सम्पूर्ण जीवन इन्हीं से जुझते हुए बीत जाता है । कुछ लोग होते हैं जो अपने जीवनकाल में इससे उबर जाते किन्तु कुछ को तो पता ही नहीं लगता और लिपटे रहते है इसी सब से । और फिर अन्त में `ज्यों की त्यों धर दिन्ही चदरिया´ से कूच कर जाते है इस दुनिया से । आए हैं तो जाना भीनिश्चित है, लेकिन अपने जीवन में कुछ ऐसा नया कर जाने की लालसा हममें सदैव बनी रहती है। पर कई बार हमें रास्ता नहीं मिल पाता और कई बार हम कोशिश ही नहीं करते, नतीजतन हमारे सम्मूख हमेशा यह शाश्वत प्रश्न टंगा रहता कि हम किस रास्ते पर चले और जीवन की नैया को पार लगाए र्षोर्षो यह शाश्वत प्रश्न हमेशा मुह बाये रहता है और इसी सोच में जीवन का अधिकांश समय बीत जाता है, `मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं ´ इसी द्वैत में जीवन कब पार हो जाता पता ही नहीं चलता ।समय की सलीब पर खड़े हुए हमें सोचना होगा, हमारा कार्य व्यवहार समाज में किस रूप में प्रसारित होगा और उसका आने वाली पीढ़ीयों पर क्या असर होगा र्षोर्षो जब हम इस विषय पर गंभीरता से सोचने बैठेगे तो हमारे सम्मुख खुलती जायेगी जीवन अबूझ पहेली और लोक जीवन की सादगी हमारा आव्हान करेगी तब नई राहें हमारे सम्मुख खुलने लगेगी । जिन पर चलते हुए हम उन मंजिलों को छू सकेगें जिनकी खिड़की भविष्य की तरफ खुलती है ।अभी पिछले दिनों भाई मायामृग ने एक पत्र के माध्यम से पुस्तक पर्व मनाने की अपनी महत्ति योजना से अवगत कराया । आज जब प्रकाशन व्यवसाय मेंवैश्विक बाज़ारवाद अपने पैर पसार चुका है और प्रकाशक बगैर लेखक को पारिश्रमिक का भुगातन किये उसके पसीने को पूरा का पूरा हजम कर जाने को आतुर बैठे हों, ठीक ऐसे समय में जब पुस्तकों की कीमतें आसमान छू रही हो और वह केवल और केवल सरकारी खरीद का हिस्सा बन रह गई हो । और इस सबके चलते पुस्तकें आम पाठक की पहुंच से बाहर निकल गई हो, ठीक ऐसे घोर बाज़ारवादी समय के बीच बोधि प्रकाशन के माध्यम से भाई मायामृग का पुस्तक मनाना एक नई राह खोजने की ओर संकेत है । उनकी इस महत्ती योजना `पुस्तक पर्व´ में देश प्रदेश के चुनिंदा लेखकों की पुस्तकें पेपरबैक कलेवर में न्यूनतम मूल्य यानि मात्र दस रूपये में उपलब्ध करवाई जायेगी । लगभग अस्सी से छियाणवे पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य मात्र दस रूपये होगा और एक सेट में दस पुस्तकें होंगी । यानि एक सेट का मूल्य मात्र सौ रूपये। इस मायने में देखें तो एक सेट में आठ सौ से लेकर एक हजार पृष्ठों की सामग्री मात्र सौ रूपये में पाठक को मुहय्या करवाई जायेगी । मायामृग की यह महत्वकांक्षी योजना उन प्रकाशको को करारा जवाब हो सकती है जो बरसों से पुस्तकों से पठाकों की दूरी का रोना रोते रहे हैं । भाई मायामृग को `पुस्तक पर्व´ हेतु बधाई और इसके आशान्वित नतीजों हेतु शुभकामना..........!

रमेश खत्री

डायरी : से.रा.यात्री : मैंने विचार बांटा था बम नहीं..... 3 जनवरी, 1995नागपुर से लगभग ग्यारह बजे छुटी ट्रेन ठीक समय से हैदराबाद पहुंच गई
http://http://www.sahityadarshan.com/View_Diary.aspx?id=१९
आलेख : वर्षा खुराना : "लोक और उसका मंगलमय आलोक......" लोक शब्द संस्कृत के `लोक दर्शन ´ धातु से धनजय प्रत्यय करने पर निष्पन्न हुआ है ।´ इस धातु का अर्थ है `देखना´ जिसका लट् लकार में अन्य पुरूष एक वचन का रूप लेते हैं अत: `लोक´ शब्द का अर्थ हुआ देखने वाला वह समस्त जन समुदाय जो इस कार्य को करता है, लोक कहलायेगा ।
http://http://www.sahityadarshan.com/View_Lekh.aspx?id=१७
कहानी : डॉ.प्रकाश कान्त : "हुजूर सरकार और........ " ऐसा अचानक हुआ था । अचानक वह और साहब उस बहुत ही छोटी सी जगह पर मिल गये थे ।
http://http://www.sahityadarshan.com/View_Story.aspx?id=१३
कविता : अलीक : शबरी शबरी, अपना दुख:ड़ाकभी किसी सेन कह पाईरूखा-सूखा.....खटता रहा जीवनचंद गिनते धेले-पाई ।
सुनो, सुदामा : सुनो, सुदामाजो कुछ घर कुटियो में होचना चबैना, आना
मन के मोर न नचा सांवरी : थोड़ी सी खुशी..... छोटे से सपने लेकरअंग अंग मटका के न नाच बावरीजालिम देख रहा है
http://http://www.sahityadarshan.com/View_Poem.aspx?id=22
व्यंग्य : अनुज खरे : नारी धर्म उर्फ संदेह परमोधर्म:
देश की प्रत्येक नारी को अपने पति पर संदेह करना ही चाहिए । उसके हर ज्ञात अज्ञात कारण पर संदेह रखना ही चाहिए । संदेह करने के हर कारण पर संदेह करना चाहिए ।

7 comments:

  1. Manki duvidhako jatata hua aalekh! Blogjagat me aapka swagat hai!

    ReplyDelete
  2. Bahut achchha likha hai apane .hindi blog jagat men apka svagat hai.shubhkamnayen.

    ReplyDelete
  3. Hindi Blog jagat men apka svagat karate huye khushee ho rahee hai.
    HemantKumar

    ReplyDelete
  4. ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
    pls visit
    http://dweepanter.blogspot.com

    ReplyDelete
  5. sundar he aasha he auur sundar hogi kyoki satyka sivam hona jaroori he aour vo bhi sundarta liye kavi kamal

    ReplyDelete